• बंदरगाह के विरोध में तमिल किसान

    'पर्यावरण और वन मंत्रालय' ने परियोजना के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक 'ईएसी' (पर्यावरण मूल्यांकन समिति) का गठन किया था।

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    - उपेन्द्र शंकर
    बंदरगाह विस्तार के खिलाफ विरोध 2018 के अंतिम महीनों में ही शुरू हो गया था। 'पर्यावरण और वन मंत्रालय' ने परियोजना के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक 'ईएसी' (पर्यावरण मूल्यांकन समिति) का गठन किया था। इस समिति को अपनी यात्रा के दौरान इलाके के निवासियों, मछुआरों और कई कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने प्रस्तावित विस्तार पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए साइट का दौरा करने वाली 'ईएसी' को एक ज्ञापन भी सौंपा था।


    दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में हजारों ग्रामीण गौतम अडानी के स्वामित्व वाले बंदरगाह के विस्तार के प्रस्ताव के खिलाफ लड़ रहे हैं। ग्रामीण, जिनमें से अधिकांश मछली पकड़ने से अपनी आजीविका चलाते हैं, कहते हैं कि तिरूवल्लूर जिले के कट्टुपल्ली गांव में बंदरगाह के विस्तार से उनकी भूमि जलमग्न हो जाएगी और उनकी आजीविका पर कहर बरपेगा।


    133.50 हेक्टेयर का यह बहुउद्देश्यीय बंदरगाह मूल रूप से 'लार्सन एंड टुब्रो' (एलएंडटी) द्वारा निर्मित किया गया था जिसे जून 2018 में 'अदानी पोर्ट्स' द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया। कंपनी ने बाद में किनारे की भूमि के कुछ हिस्सों पर दावा करके इसे 18 गुना से अधिक क्षेत्र में विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा। संशोधित मास्टर प्लान में 2,472.85 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है, जिसमें 133.50 हेक्टेयर का मौजूदा क्षेत्र और 761.8 हेक्टेयर की अतिरिक्त सरकारी भूमि, 781.4 हेक्टेयर की निजी भूमि और 796.15 हेक्टेयर जमीन समुद्र से ली जाएगी।


    प्रस्तावित विस्तार परियोजना में अंतर्जवारीय क्षेत्र, नमक क्षेत्र, मैंग्रोव और तटीय विस्तार क्षेत्र आते हैं। तट पर बसे करीब 100 कस्बों और गांवों के मछुआरों का कहना है कि इससे उनके काम पर गंभीर असर पड़ेगा। क्षेत्र की एक मछुआरिन राजलक्ष्मी का कहना है कि 'यहां पाई जाने वाली मछली की किस्मों की संख्या पहले ही काफी कम हो गई है। किसी भी प्रकार के विस्तार से इसकी आबादी और कम हो जाएगी।'


    प्रस्तावित परियोजना से 'पुलिकट झील' के आसपास की 45 बस्तियों के मछुआरों की आजीविका भी प्रभावित होगी। कट्टुपल्ली कुप्पम गांव, जो तब विस्थापित हो गया था जब 'एल एंड टी' समूह ने पहली बार बंदरगाह का निर्माण किया था, पर फिर से बेदखल होने का खतरा है क्योंकि नई परियोजना वर्तमान गांव के पास है। यदि परियोजना पूरी हो जाती है तो कुछ अन्य गांवों को भी संभावित समुद्री कटाव के कारण विस्थापन का खतरा है, जबकि कंपनी के मास्टर प्लान के अनुसार, विस्तार से बंदरगाह की कार्गो क्षमता 24.6 मीट्रिक टन से बढ़कर 320 मीट्रिक टन प्रति वर्ष हो जाएगी और नए रेल और सड़क नेटवर्क विकसित होंगे जो क्षेत्र में व्यापार को बढ़ावा देंगे।


    इस परियोजना को पर्यावरणविदों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है, जो दावा करते हैं कि इससे बड़े पैमाने पर तटीय क्षरण होगा और जैव-विविधता का नुकसान होगा, विशेष रूप से स्थानीय मछली की प्रजातियों और क्षेत्र में पाए जाने वाले केकड़ों, झींगों और छोटे कछुओं का। पर्यावरणविद् मीरा शाह के मुताबिक 'यह क्षेत्र हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर पर्यावरण प्रदूषण और तटीय कटाव का सामना कर रहा है। यह विस्तार, देश की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील 'पुलिकट' को भी नष्ट कर सकता है।'


    बंदरगाह विस्तार के खिलाफ विरोध 2018 के अंतिम महीनों में ही शुरू हो गया था। 'पर्यावरण और वन मंत्रालय' ने परियोजना के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक 'ईएसी' (पर्यावरण मूल्यांकन समिति) का गठन किया था। इस समिति को अपनी यात्रा के दौरान इलाके के निवासियों, मछुआरों और कई कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने प्रस्तावित विस्तार पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए साइट का दौरा करने वाली 'ईएसी' को एक ज्ञापन भी सौंपा था।
    जब राज्य सरकार ने परियोजना को पर्यावरण मंजूरी देने की प्रक्रिया शुरू की तो सितंबर 2023 में आंदोलन फिर से तेज हो गया। उसी महीने, राज्य के 'प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड' को भारी विरोध के बीच परियोजना के लिए एक अनिवार्य सार्वजनिक सुनवाई स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, 'अदानी पोर्ट्स' के एक प्रवक्ता ने आन्दोलनकारियों के आरोपों को खारिज कर दिया और उन्हें 'गलत' बताया। उन्होंने कहा कि विस्तार का विरोध करने वाले व्यक्ति अपने दावों को किसी प्राथमिक डेटा के आधार पर सत्यापित नहीं करते।


    विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' (आईआईटी) मद्रास में हाइड्रोजियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ इलंगो लक्ष्मणन का दावा है कि भारत के पूर्वी तट - और विशेष रूप से तमिलनाडु तट - में बंदरगाह निर्माण के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थिति नहीं है, विस्तार की तो बात ही छोड़ दें। उन्होंने कहा, 'इससे तटीय क्षेत्र प्रभावित होंगे और समुद्री कटाव होगा।' कंपनी के एक वरिष्ठ प्रवक्ता ने दावे को खारिज कर दिया और कहा कि क्षेत्र में समुद्री कटाव को केवल बंदरगाह के निर्माण से नहीं जोड़ा जा सकता।


    कुछ उद्योग विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि विस्तार योजना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और अधिक रोजगार मिलेगा। 'हिंदुस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स' के पूर्व अध्यक्ष वल्लियप्पन नागप्पन ने कहा कि विस्तार से अधिक जहाज आएंगे, जिससे आर्थिक वृद्धि होगी। उनके मुताबिक 'कंपनी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्थानीय लोगों को अच्छी तरह से मुआवजा दिया जाए और उनकी आजीविका पर कोई प्रभाव डाले बिना ठीक से स्थानांतरित किया जाए।'


    कट्टुपल्ली में बंदरगाह अधिकारी स्थानीय समुदाय को मुफ्त चिकित्सा सहायता और नौकरी का वादा करके लुभा रहे हैं। 'अदानी पोर्ट्स' के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'हम बंदरगाह के आसपास के ग्रामीणों के संपर्क में हैं और वे इस परियोजना और नौकरियां पाने में बहुत रुचि रखते हैं।'


    पुलिकट की एक मछुआरिन ने कहा कि 'हम परियोजना के खिलाफ अपनी लड़ाई में कुछ भी झेलने को तैयार हैं। हमारी आजीविका की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए।' उनमें से एक ने कहा, 'अगर वे हमें दवाएं देना चाहते हैं और हमारी जमीन लेना चाहते हैं, तो हम ऐसा नहीं होने देंगे।' प्रदर्शनकारियों ने तमिलनाडु सरकार पर उनके हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप भी लगाया। कई लोगों का कहना है कि चुनावों से पहले, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बार-बार वादा किया था कि वे परियोजना को रद्द कर देंगे, लेकिन 2021 में सत्ता में आने के बाद से कुछ नहीं हुआ।
    (लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं व पानी पर कार्य करते हैं।)

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